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Saturday 15 October 2016

भारत और विश्‍व

भारत की विदेश नीति में देश के विवेकपूर्ण स्‍व-हित की रक्षा करने पर बल दिया जाता है। भारत की विदेश नीति का प्राथमिक उद्देश्‍य शांतिपूर्ण स्थिर बाहरी परिवेश को बढ़ावा देना और उसे बनाए रखना है, जिसमें समग्र आर्थिक और गरीबी उन्‍मूलन के घरेलू लक्ष्‍यों को तेजी से और बाधाओं से मुक्‍त माहौल में आगे बढ़ाया जा सकें। सरकार द्वारा सामाजिक- आर्थिक विकास को उच्‍च प्राथमिकता दिए जाने को देखते हुए, क्षेत्रीय और वैश्विक दोनों ही स्‍तरों पर सहयोगपूर्ण बाहरी वातावरण कायम करने में भारत की महत्‍वपूर्ण भूमिका है। इसलिए, भारत अपने चारों ओर शांतिपूर्ण माहौल बनाने के प्रयास करता है। और अपने विस्‍तारित पास-पड़ोस में बेहतर मेल-जोल के लिए काम करता है। भारत की विदेश नीति में इस बात को भली-भांति समझा गया है। कि जलवायु परिवर्तन ऊर्जा उनके समाधान के लिए वैश्विक सहयोग अनिवार्य है।बीते वर्ष में कई रचनात्‍मक कार्य हुए, कुछ महत्‍वपूर्ण सफलताएं हासिल की गई, और भारत की नीति के समक्ष कुछ नयी चुनौतियां भी सामने आयींपड़ोसी देशों के साथ भारत की साझा नीति है। वर्ष के दौरान भूटान में महामहिम के राज्‍यभिषेक और लोकतंत्र की स्‍थापना से इस देश के साथ भारत के संबंधो का और विकास हुआ। भारत ने लोकतांत्रिक राजसत्‍ता में नेपाल के रूपान्‍तरण और बांग्‍लादेश में लोकतंत्र की बहाली का जोरदार समर्थन किया भारत ने अफगानिस्‍तान के निर्माण और विकास में योगदान किया है पड़ोसी देशों के साथ मित्रतापूर्ण और घनिष्‍ठ द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने के अलावा, भारत ने सार्क (दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन) को एक ऐसे परिणामोन्‍मुखी संगठन के रूप में विकसित करने की लिए भी काम किया है, जो क्षेत्रीय एकीकरण को प्रभावकारी ढंग से प्रोत्‍साहित कर सके।जनवरी, 2008 में प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह की चीन की सरकारी यात्रा और जून, 2008 में विदेश मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी की चीन-यात्रा के साथ द्विपक्षीय संबंध और मजबूत हुए। भारत चीन सीमा पर स्थिति शांतिपूर्ण रही जबकि विशेष प्रतिनिधियों द्वारा सीमा विवाद के समाधान के प्रयास जारी रहे। दोनों देशों के बीच रक्षा सहयोग से आपसी विश्‍वास बढ़ाने में मदद मिली चीन ने सितंबर, 2008 में कोलकाता में नए वाणिज्‍य दूतावास की स्‍थापना की और इससे पहले भारत ने जून, 2008 ग्वांझो (Guangzhou) में वाणिज्‍य दूतावास खोला था।एक प्रमुख उपलब्धि अक्‍टूबर, 2008 में भारत- अमेरिका सिविल परमाणु समझौते पर हस्‍ताक्षर किए जाने के रूप में सामने आयी। इस समझौते से परमाणु क्षेत्र में भारत को व‍ह प्रौद्योगिकी मिलने का रास्‍ता साफ हो गया, जिससे वह पिछले तीन दशक से वंचित था। इस द्विपक्षीय समझौते पर हस्‍ताक्षर होने के बाद भारत ने असैनिक परमाणु सहयोग के बारे में फ्रांस, रूस और कज़ाकिस्‍तान के साथ ऐसे ही समझौते पर हस्‍ताक्षर किए। भारत-अमरीकी महत्‍वपूर्ण भागीदारी को सितंबर 2008 में प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की अमेरिका यात्रा से और भी बल मिला, जब उन्‍होनें वाशिंगटन में अमरीकी राष्‍ट्रपति जोर्ज डब्‍लू बुश के साथ द्विपक्षीय बैठक और नवंबर में जी-20 शिखर सम्‍मेलन के अवसर पर भी श्री बुश से भेंट की। अमेरिका भारत का सबसे व्‍यापार भागीदार और प्रौद्योगिकी का स्रोत रहा है।वर्ष के दौरान रूस के साथ भारत की परमंपरागत मित्रता और सामरिक संबंध और मजबूत किए गए। रूसी परिसंघ श्री दिमित्री मेदवेदेव ने दिसंबर 2008 में वार्षिक शिखर बैठक के लिए भारत की सरकारी यात्रा की। वर्ष 2008 को भारत में रूस के वर्ष रूप में मनाया गया वर्ष 2009 रूस में भारत के वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। रूस के साथ अपने सामरिक संबंध एव सांस्‍‍कृतिक संबंधो को और मजबूत करना चा‍हता है तथा इस क्षेत्र के साथ और भी घनिष्‍ठ रूप में जुड़ना चाहता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मध्‍य एशियाई देशों के सहयोग अधिक वास्‍तविक और विविधतापूर्ण हो सके।भारत ने प्रतिरक्षा और सुरक्षा, परमाणु एवं अंतरिक्ष, व्‍यापार एवं निवेश ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, संस्‍‍‍कृति और शिक्षा जैसे विविध क्षेत्रों में ए‍क महत्‍वपूर्ण भागीदार, यूरोपीय संघ किए है। यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्‍यापारिक भागीदार और निवेश प्रमुख स्रोतों में से एक है।भारत ने अफ्रीका देशों के साथ अपने पंरपरागत मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्‍मक संबंधों को महत्‍व देना जारी रखा है। इस संदर्भ में अप्रैल, 2008 मे भारत-अफ्रीका मंच का प्रथम शिखर सम्‍मेलन एक ऐतिहासिक घटना थी, जिसमें दिल्‍ली घोषणा पारित की गई और स‍हयोग के लिए भारत-अफ्रीका फ्रेमवर्क किया गया ये दोनों दस्‍तावेज भारत और अफ्रीका के बीच सहयोग की भावी रूप-रेखा को परिभाषित करते हैं। विदेश मंत्री श्री प्रणव मुखर्जी ने 26 फरवरी,2009 को नई दिल्‍ली में भारत की प्रतिष्टित परियोजना पैन-अफ्रीकन ई-नेटवर्क का उद्घाटन किया।लैटिन अमरीकी और कैरिबियाई क्षेत्र के देशों के साथ सुदृढ़ संबंध कायम करने के भारत के प्रयासों के हाल के वर्षो में प्रभावशाली परिणाम सामने आये हैं। इन देशों के साथ विभिन्‍न स्‍तरों पर प्रतिनिधिक-क्षेत्रगत वार्ताएं हुई है। और आपसी लाभप्रद सहयोग के लिए संस्‍थागत व्‍यवस्‍था का फ्रेमवर्क तैयार हुआ है।पश्चिमी एशिया और खाड़ी क्षेत्र के देशों के साथ भारत के सहयोग का स्‍वरूप समसामयिक रहा है, जिसमें बाहरी आंतरिक शांतिपूर्ण उपयोग और भारतीय प्रक्षेपण यानों का इस्‍तेमाल शामिल है। इस क्षेत्र में भारत से जाकर बसे करीब 50 लाख प्रवासी रहते हैं, जिन्‍होंने भारत और खाड़ी क्षेत्र, दोनों के आर्थिक विकास में महत्‍वपूर्ण योगदान किया है।भारत आसियान और एशिया-प्रशांत क्षेत्र के देशों के साथ सहयोग को 21वीं सदी में अपनी कूटनीति का महत्‍तवपूर्ण आयाम समझता है, जो भारत की लुक ईस्‍ट पॉलिसी यानी पूरब की ओर देखो नीति में स्‍पष्‍ट रूप से झलकता है।2009 में, भारत ने अपने आर्थिक एवं तकनीकी सहयोग के नेटवर्क का महत्‍वपूर्ण विस्‍तार किया है। हाल में गठित मंचों, जैसे आईआरसी (भारत-रूस-चीन), ब्रिक (ब्राजील-रूस-भारत-चीन) और इब्‍सा (भारत-ब्राजील-दक्षिण अफ्रीका) में भारत महत्‍वपूर्ण भूमिका अदा करने के लिए तैयार है। भारत ने आसियान पूर्वी एशिया शिखर सम्‍मेलन बीआईएमएसटीईसी (बिम्‍सटेक), मेकांग-गंगा सहयोग, जी-15 और जी-8 जैसे आर्थिक संगठनों के साथ जुड़ने के निरन्‍तर प्रयास किए हैं।बहुराष्‍ट्रवाद के प्रति सुदृढ़ प्रतिबतद्धता रखते हुए भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा को मजबूत बनाने में योगदान किया है। भारत ने संयुक्‍त राष्‍ट्र परिषद में सुधार और यूएनजीए के पुनरूत्‍थान के प्रस्‍तावों का समर्थन किया है। भारत चाहता है कि विकासशील देशों और उभरती ताकतों की उचित आकांक्षाओं को देखते हुए वैश्विक संस्‍थान विश्‍व-व्‍यवस्‍था की नई वास्‍तविकाताओं के अनुरूप बनें।इन रचनात्‍मक गतिविधियों के साथ-साथ देश के आंतकवाद पीडित स्‍थानों और सीमा-पारी के आंतकवाद से भारत की अस्थिर सुरक्षा सहित राष्‍ट्र की सुरक्षा की दृष्टि से 2008-09 में भारत की विदेशी नीति को नए खतरों का सामना करना पड़ा।2008-09 में पाकिस्‍तान के साथ समग्र वार्ता पांचवे दौर में पहुची। यह वार्ता पाकिस्‍तान के इस घोषित वायदे पर आधरित थी कि वह किसी भी तरह से भारत के खिलाफ आंतकवाद के लिए अपने नियंत्रण वाली भूमिका का इस्‍तेमाल करने की अनुमति नहीं देगा। किंतु जुलाई, 2008 में काबुल मे भारतीय दूतावास पर और नवंबर, 2008 में मुंबई पर पाकिस्‍तान की धरती से किए गए आंतकवादी हमलों से यह सिद्ध हो गया कि पाकिस्‍तान अपना वायदा निभाने में सक्षम नहीं रहा है। इसे देखते हुए वार्ता प्रक्रिया निलंबित होना स्‍वाभविक थी।मुंबई हमलों की विश्‍वभर में अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय ने निंदा की। पाकिस्‍तान और पूरी दुनिया के समक्ष इस बात के ठोस सबूत किए गए कि इन हमलों की साजिश में पाकिस्‍तानी नागरिक शामिल थे और उन्‍होंने ही हमलों को अंजाम दिया। किंतु पाकिस्‍तान की परवर्ती कार्रवाइयां विलंबकारी और भ्रम फैलाने वाली रही और यही वजह है कि वह अभी तक हमलों की साजिश रचने वालों को दंडित नहीं करा पाया है अथवा पाकिस्‍तान की धरती से भारत के खिलाफ चलाए जा रहे आंतकवाद के ढ़ाचे को नष्‍ट नहीं कर पाया है।2008 में श्रीलंका में एलटीटीई की पंरपरागत सैन्‍य क्षमता को समाप्‍त करने के लिए बड़े पैमाने पर सैन्‍य अभियान चलाए गए, जिसमें बड़ा मानवीय संकट पैदा हुआ। भारत न वहां के नागरिकों और आंतरिक रूप में विस्‍थापित व्‍यक्तियों के लिए राहत आपूर्ति तथा चिकित्‍सा सहायता के राजनीतिक संकट में श्रीलंका की सहायता करने के प्रयास भी निरंतर जारी से जातीय समस्‍या के राजनीतिक समाधान में प्रवेश को देखते हुए, भारत एकीकृत श्रीलंका के फ्रेमवर्क के भीतर मुदृदों के ऐसे शांतिपूर्ण समाधान के लिए काम करेगा, जो विशेष रूप से तमिलों सहित देश के सभी समुदायों को स्‍वीकार्य हो।वर्ष के दौरान अन्‍य चुनौती बिगड़ती हुई अंतर्राष्‍ट्रीय आर्थिक स्थिति थी। अंतराष्‍ट्रीय वित्‍तीय संकट ने आर्थिक संकट का रूप ले लिया क्‍योंकि प्रमुख प्रश्चिमी अर्थव्‍यवस्‍थाओं और बाजारों में मंदी छा जाने से भारत के विकास में सहायक अंतराष्‍ट्रीय माहौल तेजी से बदल गया। इसके बावजूद भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में 2008-2009 के दौरान 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई, और वह विश्‍व अर्थव्‍यवस्‍था में वृद्धि एवं स्थिरता का घटक बनी है। संकट से निबटने के जी-20 देशों जैसे, अंतर्राष्‍ट्रीय प्रयासों में भारत ने सक्रिय भूमिका अदा की, ताकि विकासशील देशों के हितों की रक्षा की जा सके भारत ने य‍ह सुनिश्चित करने का प्रयास भी किया कि वैश्विक आर्थिक मुदृदों के बारे में निर्णय करने वाली अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यवस्‍था लोकतांत्रिक हो जो मौजूदा वास्‍तविकताओं को व्‍यक्‍त करे।वर्ष 2008 की समाप्ति पर यह स्‍पष्‍ट हो गया कि भारत के भविष्‍य पर दुष्‍प्रभाव डालने वाले प्रमुख अंतर्राष्‍ट्रीय मुदृदों जैसे वैश्विक और स्‍थायी विकास, के हल के लिए सहयागपूर्ण वैश्विक समाधान अनिवार्य है। इन समाधनों को कार्य रूप प्रदान करने के अं‍तर्राष्‍ट्रीय प्रयासों में भारत की सक्रिय एवं भागीदारीपूर्ण भूमिका रही है। भारत उन्‍हें सफल बनाने में निरंतर योगदान करता रहेगा

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